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गुनहगार समझते हैं।

आईने के सामने
आईने के सामने
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वो जिसके लिए खुद को, गुनहगार समझते हैं।

उन सारी खताओं को, हम प्यार समझते हैं।

कलियाँ ना खिलें चाहे, महके ना चमेली भी,

हम तों बस उनके दीद को, बहार समझते हैं।

मुंह से ना कहें कोई, वो दिल का हाल हमसे

हम फिर भी समझें, इतना, समझदार समझते हैं।

दिल में है उनके क्या? वो जुबां तक नहीं लाते

खामोशियों को उनकी, हम इकरार समझते हैं।

दिल ले के वो दिल देंगे, तड़पा के वो तड़पेंगे

इतना तो हम भी उनको, दिलदार समझते हैं।

हर बात में वो रखते हैं, पैसों का जो हिसाब

शायद वो हमें दिल का, खरीदार समझते हैं।

मुश्किल में वो भी शख्स, साथ छोड़ता है ‘जानी’

जिसको  हमेशा  लोग, मददगार  समझते हैं ।

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