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फिर एक बार काला बुधवार हो गया है।

आईने के सामने
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फिर एक बार काला बुधवार हो गया है।

अब आदमी का जीना दुश्वार हो गया है।

दिल्ली हो या बनारस, जम्मू हो या की पटना

मुंबई हो या कहीं भी, हो सकती है ये घटना

ट्रेनों में हों या कोर्ट में, महफूज नहीं हैं

आतंक के निशाने पे, अब बाजार हो गया है।

फिर एक बार काला बुधवार हो गया है।

हिन्दू नहीं मरते, न मुसलमान ही मरते हैं

इंसानियत पे वार हो, तो इंसान ही मरते हैं।

नेताओं की चकल्लस, सुन सुन के हुये आजिज़

इंसानियत तो कब से, तार-तार हो गया है।

फिर एक बार काला बुधवार हो गया है।

हर बार झूठे वादे, हर बार झूठी कसमें

हर बार बस दिलासे, हर बार वही रस्में

घड़ियाली आँसू कब तक, देखेंगे और सहेंगे

लगता है जैसे की अब, सरकार सो गया है

फिर एक बार काला बुधवार हो गया है।

अब आदमी का जीना दुश्वार हो गया है।

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