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नेतागीरी की आस, अनशन और उपवास

आईने के सामने
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नेतागीरी भी अजीब नशा हैं। अफीम की तरह। जो एक बार नेतागीरी का नशा कर लेता है, पूरी ज़िंदगी उससे उबर नहीं पाता। नौकरी करने नौकरी करने वाले तो 60 साल में रिटायर हो जाते हैं, लेकिन नेतागीरी एक बार शुरू करो, तो फिर आजीवन छूटती नहीं। ये वो आग हैं गालिब, कि लगाए न लगे और बुझाऐ न बुझे। एक बार लाल बत्ती में घूमने का मौका मिल जाय तो, फोटो पर अगरबत्ती लगने तक छूटती नहीं। एक बार फ्री में उड़न खटोले से सफर कर ले, तो मरने के पहले कौन फ्री की चीज छोड़ेगा ?

आखिर आजकल फ्री का जमाना हैं। हर चीज के साथ कोई ना कोई चीज फ्री है। और आदमी फ्री की चीज पर टूटा हुआ है। जब से लोंगों को समझ में आया है, कि नेतागीरी के साथ सब कुछ फ्री ही फ्री है, तब से जनता नेतागीरी करने कूद पड़ी हैं। अब नेतागीरी कोई बच्चों का खेल तो हैं नहीं, कि घर से निकले और किसी भी गली में शुरू कर दो। नेतागीरी ही क्या जो जनता देखे ना? जनता को दिखाना भी हो और शार्टकट में नेता भी बनना कोई आसान तो नहीं।

वैसे भी जो शार्ट हो, उसे मार्डन मानते हैं । इसलिए लोग नेतागीरी का शार्टकट निकाल रहे हैं। शार्ट चीजों का खर्चा भी कम लगता है और असर भी ज्यादा होता है। अब लोग मल्लिका शेरावत के शार्ट कपड़े देखेंगें कि फुल कपड़े? जनता अपने सारे काम शार्टकट तरीके से करना चाहती है, कि मेहनत और ईमानदारी से?  तो नेतागिरी भी आजकल शार्टकट से ही, हो रही हैं।

अब आजकल देश गुलाम तो है नहीं, कि अंग्रेजों से लड़ने के लिए नेतागीरी की जाए। नेतागीरी तो नेतागीरी ही है, करनी ही पड़ेगी। आजादी के तुरन्त बाद लोग आंदोलन चलाते थे। ये सब तो अब ओल्ड फैशन हो गया। उस जमाने में अखबारों में केवल खबरें छपती थीं। आजकल बूध्दू बक्सा सब कुछ लाइव दिखाता है। इसलिए आजकल के नेताओं को जरूरी है कि डिजायनर कपड़े पहने, अच्छे दिखें, तभी तो लोग अच्छा समझेंगें।

अगर नेता लोग पैदल मार्च निकालेंगें, पैदल घूमेंगें, तो चेहरे पर धूप लगेगी और पसीना आ जाएगा। अच्छा पोज बनने कि जगह एक्सपोज हो जाऐंगे। ऊपर से टाइम भी बहुत लगेगा सब जगह पहुँचने में। इसलिए नेतागिरी का शार्टकट ये हो गया है, कि बूध्दू बक्से को कब्जे में लो, एक जगह आराम से वातानुकूलित टेंट में बैठकर, अनशन या उपवास करो । जिससे अगर कुछ ऊंच-नींच हो, तो डाक्टरों कि फौज बचा ले । और चेहरे की चमक बनी रहे, न्यूज चैनलों के इक्स्क्ल्युजिव के लिए।

नेतागीरी फिर भी आजकल संकट में है।  कारण है कि अनशन और उपवास के लिए भी कोई मुद्दा ही नहीं है। अब जनता महंगाई से मरे तो मरे, बेगारी से मरे तो मरे, बमविस्फोट से मरे तो मरे, रेल हादसे से मरे तो मरे,  इसमें नेता क्या करे ?

इन सब मुद्दों पर नेतागीरी करने में पसीना छूटने का डर है। इसलिए ऐसे मुद्दे उठाते हैं, जिसमें एक बूँद पसीना भी ना निकले और बूध्दू बक्से पर कब्जा भी जम जाये। अब एसे मुद्दे ढूढ़ना कोई आसान तो नहीं। लेकिन नेता तो आखिर नेता होते हैं, जो एक मुद्दा भी ना ढूढ़ पाए, वो नेता ही कैसा? तो हमारे नेता आजकल जनता की भावनाओं से खेलने के बाद सदभावना स्थापित करने के लिए उपवास कर रहे हैं, वो भी बूध्दू बक्से के सामने। एअर कंडीशनर रथयात्रा निकाल रहे हैं, पूरे तामझाम के साथ। आखिर जनता को नेतागीरी होते हुए दिखना तो चाहिए ही। आजकल, अनशन और उपवास ही, नेतागीरी की आस नजर आते हैं। #mce_temp_url#

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