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जन लोकपाल से भ्रष्टाचार रुकेगा क्या?

आईने के सामने
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आज हम केवल सरकारी घूस को ही भ्रष्टाचार कहते है। जब की भ्रष्टाचार उससे बहुत ज्यादा और ब्यापक अन्य जगहों पर है। सामाजिक भ्रष्टाचार को, जातीय भ्रष्टाचार को, धार्मिक भ्रष्टाचार को, प्राइवेट कंपनियों के भ्रष्टाचार को, एन जी ओ के भ्रष्टाचार को, जो की इससे बहुत ज्यादा है, लोग भ्रष्टाचार मानने को तैयार ही नहीं हैं। हाल यह है की भ्रष्टाचार की कोई सर्वमान्य परिभाषा अभी तक देश में नहीं है। सबकी अपनी परिभाषा है, जिसमे दूसरा तो भ्रष्टाचारी हो जाता है, लेकिन खुद कभी नहीं। अपना भ्रष्टाचार, अनियमितता या रीति रिवाज है, असली भ्रष्टाचार तो सिर्फ सरकारी कर्मचारी करते हैं, यह जन लोकपाल इसी अवधारणा पर बना है। जिससे कारपोरेट जगत और एन जी ओ बाहर हैं। उनके बारे में कोई बात भी नहीं करना चाहता।

सभी लोग यह मानते हैं की लोकपाल से भ्रष्टाचार तो नहीं खत्म होगा, लेकिन सबका यही प्रश्न होता है की शुरुआत तो कभी ना कभी करनी होगी, फिर लोकपाल से ही क्यों नहीं? मेरा मानना है की शुरुआत अपने भ्रष्टाचार को रोकने से क्यों नहीं? लेकिन बात फिर वही आ जाती है की कोई भी अपने भ्रष्टाचार को भ्रष्टाचार मानता ही नहीं तो रोके क्या? और यही दोहरा चरित्र कभी भी भ्रष्टाचार को खतम नहीं होने देगा।

अगर हम भ्रष्टाचार के कुछ रोज़मर्रा के उदाहरणों को देखें तो हम पाएंगे की सरकारी भ्रष्टाचार तो उसके आगे कुछ भी नहीं। मसलन, आज हर भारतीय शादी में औसतन एक से दो लाख का दहेज जरूर लिया जाता है। जितना ज्यादा दहेज, उतनी ज्यादा सामाजिक प्रतिष्ठा। यह हम रिवाज के नाम पर करते हैं, भ्रष्टाचार के नाम पर नहीं। आज कन्या भ्रूण हत्या ज्यादा हो रही है, लेकिन यह कोई भ्रष्टाचार नहीं है। मंदिरों में लाखों –करोड़ों के गुप्त दान (जिसका देनेवाले के पास कोई लेखा जोखा नहीं होता) कोई अपने खून पसीने की कमाई से नहीं देता। लेकिन यह तो धर्म है, भ्रष्टाचार नहीं। आज भी जाति के नाम पर हाईकोर्ट के जज स्तर के दलित अधिकारियों को अपमानित किया जाता है, लेकिन यह भ्रष्टाचार नहीं है। आज समाज में सभ्य कहे जाने वाले संभ्रांत लोग अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में प्राइमरी के दाखिले के लिए पचास हजार या लाख रुपये डोनेशन देने में और लेने में फख्र महसूस करते हैं। प्राइवेट स्कूल, शिक्षा के अलावा सब कुछ बेंचते हैं, और हम शान से खरीदते ही नहीं, बल्कि एसे स्कूलों में जुगाड़ लगाकर बच्चे को दाखिल कर अपने को गौरवान्वित महसूस करते हैं। प्राइवेट हास्पिटलों में आप को छींक भी आ जाए तो हजारों का टेस्ट करवाकर ही आपको छोड़ेंगे। लेकिन खुद अन्ना जी अनशन तोड़ने के बाद एम्स में नहीं, दिल्ली /गुड़गांव के सबसे महंगे अस्पताल वेदांता में जाकर क्या संदेश देते हैं? हास्पिटल अब कारपोरेट घराने बन गए हैं। लेकिन वो तो लोकपाल से बाहर रहेंगे। सुबह दूधवाले  से (पानी मिलाने की शिकायत से ), बच्चों की स्कूल बस में एक सीट पर चार चार बच्चे बैठाने को लेकर झिक झिक, दिन में मोबाइल कंपनियों के अनचाहे वैलू एडेड सर्विसेस एक्टिवेट होने से परेशान, शाम को जल्दी  घर आने के चक्कर  में रेड लाइट तोड़ने पर खुद ही ट्रैफिक हवलदार को सौ दो सौ देकर अदालती कार्यवाही से बचने तक क्या होता है?   कितना गिनाएं, आप एक दिन सुबह से शाम तक के अपने कामों को निष्पक्ष होकर देखें। फिर पता चलेगा की भ्रष्टाचार की जड़ कहाँ है?

हम अपनी सुविधानुसार भ्रष्टाचार को परिभाषित करते हैं, यही मूल कारण है कि यह लोकपाल से नहीं मिटनेवाला। इसे मिटाने के लिए कानून नहीं, जनता को बदलना होगा।

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