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कैसे हम गणतन्त्र मनायें? कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
संविधान की, लाज नहीं है
गांधी, नेहरू, आज नहीं हैं
जनता का, अभी राज नहीं है
जागृत अभी, समाज नहीं है
हम दुख करें, या खुशी मनायें? कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
कैसे हैं? हम लोग महान
मजहब पर, लेते हैं जान
दहशत-गर्दी का, तूफान
सहमा-सहमा, हर इंसान
करें परेड या जान बचाएं? कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
आए दिन, होता घोटाला
हर नेता का, मुंह क्यों काला
कभी तहलका, कभी हवाला
रोता है बस, मेहनत वाला
सभी कमाएँ, कुछ जन खाएं। कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
सीमा से, विस्थापित लोग
अतिशय कष्ट, रहे हैं भोग
भूंख,प्यास से करते जोग
दिल्ली से, हम भरते जोश
कुछ तो घूमें एसी में, कुछ ठंडी में हाँड़ कपायें। कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
शर्म, कुपोषण पर है आज
महंगाई से, त्रस्त समाज
तोड़-फोड़ कर देश-समाज
राजनीति, बस करती राज
साठ साल से सहते जाएं। कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
टू जी, कामनवेल्थ घोटाले
जांच से केवल, पर्दा डाले
देश के हैं, एसे रखवाले
चाहे जितना, माल दबा ले
सीएजी कितना चिल्लाये? कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
क्या हम कहें, सुनें क्या ‘जानी’
सबको नहीं है, रोटी, पानी
मर गया सबकी, आँख का पानी
हर सरकार की, यही कहानी
क्या चुप रहें, और क्या बताएं? कैसे हम गणतन्त्र मनायें?
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