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जब से इस देश ने उधारीकरण के साथ आंखें चार किया है, बहुत से रस्मो-रिवाज भी भारत को उधार के साथ फ्री में मिले हैं। बिल्कुल एक के साथ एक फ्री की स्टाइल में। हमारा देश सभी चीजों में पीछे भले हो, लेकिन क्या मजाल कि दिखावे में किसी से पीछे हो। चाहे जितना जोर लगा लो, सबसे आगे होंगें हिन्दुस्तानी।
आजकल हमारा देश तरक्की के पथ पर कछुआ चाल से सरपट दौड़ा जा रहा है। पड़ोसियों के मुकाबले हमारा मुल्क एक मजबूत लोकतंत्र हो गया है। हमारे देश में जितनी स्वतंत्रता, स्वच्छन्दता है, उतना किसी और देश में नहीं होगी। जो चाहे बोलो, जो चाहे छापो, जो चाहे भेजो। अभिब्यक्ति की पूरी आजादी है। उधारीकरण ने अभिब्यक्ति की आजादी में चार चांद लगा दिया है।
बुजुर्ग लोग अपने जन्म को कोसते हैं कि, काश! उनका जन्म पचास साल पोस्टपोण्ड हो गया होता, तो कम से कम दिल की बात अभिब्यक्त करने की आजादी तो होती। और मुन्नू की मम्मी से प्यार का इजहार करने के लिये, “बागों में बहार है, फ़ूलों पे निखार है… ” जैसी भूमिका तो न बांधनी पड़ती। सीधे कहते, “कहो न प्यार है…. ” मगर तब ऐसी किस्मत कहां थी, कि इतनी अभिब्यक्ति की आजादी मिलती।
अब आजकल अभिब्यक्ति की इतनी आजादी है कि करीना-शाहिद जैसे मासूम बच्चे भी अपने दिल की अभिब्यक्ति यानी की चुम्बन जैसे पुनीत कार्य भी कैफ़े में ही कर लेते हैं। और मीडिया वाले भी अपना परम धरम समझ कर इस थूथना-भिडन्त को बडी आजादी से अभिब्यक्त करते हैं। डीपीएस के छात्र-छात्रा भी अपने धार्मिक अभिब्यक्ति को एमएमएस करने के लिये आजाद हैं। काश! इसकी चौथाई आजादी भी लैला मजनू के जमाने में होती, तो मजनू, “तेरे दर पे आया हूं, कुछ करके जाउंगा… ” के बजाय, “दुल्हन तो जायेगी दुल्हे राजा के साथ.. ” या, ”दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे… ” गाते। नहीं तो बेचारे कुर्ता फ़ाड़ के, लैला लैला ही चिल्लाते रह गये।
जहां तक अभिब्यक्ति की आजादी की बात है, हमारे नेताओं से ज्यादा शायद ही किसी ने इसका उपयोग किया हो। वाम दल वाले अपनी अभिब्यक्ति के नाम पर हर सरकारी फ़ैसले का विरोध करते हैं। और जनता की अभिब्यक्ति के नाम पर सरकार को सरका- सरका कर चलाते रहे हैं। कोई भी नेता कभी भी कुछ भी बोले, बाद में कह दे कि मीडिया ने तोड़ा मरोड़ा है। कोई किसी को शिखण्ड़ी कह दे या शकुनी। यहां तक की विधानसभा और लोकसभा में जूते चप्पल तक चलाकर दिल की अभिब्यक्ति की पूरी आजादी है।
वैसे तो उधार के रस्मो रिवाज में, आजकल वेलेन्टाइन डे सबके सिर चढकर बोल रहा है। आखिर मेहमान जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है। वेलेन्टाइन डे यानी कि प्यार के इजहार का दिन। दिल की अभिब्यक्ति का दिन। अपने देश मे वेलेन्टाइन डे मनवाने के पीछे जरूंर विदेशियों की चाल है। नहीं तो बारह-मासी प्यार के फ़सल की भरपूर पैदावार देनेवाले देश में, प्यार के लिये सिर्फ़ एक दिन। इससे हमे जनसंख्या में चीन से पीछे करने की साजिश है। जरा सोचिये आज अगर भगवान श्री कृष्ण होते, तो हजारों गोपिकाओं को एक दिन में हैप्पी वेलेण्टाइन कैसे कह पाते। हमारे नबाब जिनकी हजारों बीबियां होती थी, एक ही दिन में सबसे प्यार का इजहार कैसे कर पाते। अब प्रेमियों को प्यार के इजहार के लिये साल भर इंतजार करना पड़ेगा। लेकिन इस साल भर में जो अपूरणीय क्षति होगी, उसकी भरपाई कैसे होगी। इसलिये जनता की बेहद मांग पर, हर दिन वेलेण्टाइन डे होना चाहिए।
हालांकि हर दिन वेलेन्टाइन डे होने से देश में निकम्मों की फ़ौज बढ जायेगी। क्योंकि गालिब ने इश्क करने वालों को निकम्मा घोषित कर दिया है। वैसे हमारी सरकार बिना इश्क के ही निकम्मों (बेरोजगारों) की फ़ौज तैयार करने में माहिर है। आदमी सभी काम के बने रहें, इसलिये वेलेन्टाइन डे एक दिन ही ठीक है। यद्यपि प्यार के लिये सिर्फ़ एक दिन होने से कम्पटीशन बहुत टफ़ हो जायेगा। इसलिये सभी होनहर निकम्मों से यही कहना है कि – “ जरा निकम्मों से कह दो जी, वेलेण्टाइन डे चूक ना जायें… ”
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