Menu
blogid : 6240 postid : 189

बनन में, बागन में, … वेलेंटाइन ! (व्यंग्य)

आईने के सामने
आईने के सामने
  • 74 Posts
  • 227 Comments

ज्यों ज्यों वेलेंटाइन डे नजदीक आता है, नवयुवकों और नवयुवतियों की बांछे (वो शरीर में जहाँ भी पायी जाती हों) खिल जाती हैं। वैसे भी बसंत और फागुन का हमारे पूर्वजों ने भी बहुत नाजायज फायदा उठाया है। कभी पद्माकर जी ने बसंत के बारे में कहा था कि- “बीथिन में, ब्रज में, नेबोलिन में, बोलिन में, बनन में, बागन में, बगरों बसंत है”। लेकिन मेरे जैसा खूसट आदमी, आजकल जब अखबारों, न्यूज चैनलों को देखता है, तो बस प्यार के भूंखे भेड़िये हर शहर, हर गली मोहल्ले में धड़ल्ले से दिखते हैं। और मैं सोचता हूँ कि- ‘देश में, प्रदेश में, जिले में, मुहल्ले में, शहर में या गाँव में, नहीं सरकार है। यूपी में, एमपी में, पटना में, दिल्ली में, कश्मीर से केरल तक, सिर्फ बलात्कार है ?’

जब से हमारे देश ने उधारीकरण अपनाया है, बहुत से उधार के त्योहार भी अपना लिए है। अगर स्वदेशी अपनाने के चक्कर में बाबा रामदेव को सरकार ने घनचक्कर ना किया होता, तो मैं भी कहता कि, स्वदेशी फागुन और होली, वेलेंटाइन से ज्यादा अच्छा होता है। कहाँ तो महीने भर फागुन कि मस्ती, जिसमें ‘बाबा भी देवर लागे’ होता था, कहाँ एक दिन का वेलेंटाइन। और अगर वेल-इन-टाइम नहीं हुये, तो फिर एक साल का इंतजार। आखिर प्यार के इजहार के लिए भी नियत समय? ये तो मौका देखकर, चौका मारने की बात होती है, इसमें भी टाइम कि फिक्सिंग? सरासर ज्यादती है हमारे नवयुवकों के साथ।

हमारे देश में वेलेंटाइन का कम से कम इस बात के लिए तो विरोध होना ही चाहिए कि इसका टाइम फिक्स है। आखिर यह हमारी महान परंपरा के खिलाफ है। हमारे देश में, कोई भी प्रोजेक्ट हो, योजना हो, बांध हो, सड़क हो या पुल हो, कोर्ट का मुक़दमा हो, जब किसी भी काम के पूरा होने का समय कोई नहीं तय कर सकता, फिर प्यार का समय कैसे नियत हो सकता है? हम सब फ्लेक्सिबिल लोग हैं, हम लोगों के लिए वेलेंटाइन फिक्स नहीं होना चाहिए।

कहीं आपको एसा तो नहीं लग रहा कि मैं वेलेंटाइन का विरोध कर रहा हूँ, और आप मुझे कट्टरपंथी समझ रहे हों, या बैकवर्ड समझ रहे हैं, तो मैं आपको बता दूँ कि मैं तो केवल इतना चाहता हूँ कि वेलेंटाइन केवल एक दिन ना मनाकर, पूरे साल मनाना चाहिए। खासकर के संसद सत्रों में अगर राजनीतिक पार्टियाँ आपस में फूल देकर एक दूसरे से प्यार का इजहार करें तो संसद सत्र कितना सुचारु रूप से चलेगा। लेकिन हमारे देश में शायद लोग चाहते ही नहीं कि सब आपस में प्रेम करें। बेचारे सीबीआई के सरकारी वकील ए के सिंह ने, 2जी के आरोपियों से प्यार से बातचीत क्या कर ली, सीबीआई ने उन्हे हटा दिया, मीडिया ने चिल्ल-पों मचा दी। अच्छा तो मैं भी चलता हू फूल लेकर लाइन में खड़ा होता हूँ आपके लिए…

manojjohny.com

Tags:   

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply